छत्तीसगढ़-तेलंगाना में नक्सली आतंक के रूप में कुख्यात नक्सली कमांडर रावुला श्रीनिवास रमन्ना (56) की मौत की खबरें आई हैं. बताया जा रहा है कि उसकी मौत बस्तर के जंगलों में हार्ट अटैक की वजह से हुई है.
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रपट में बताया गया है कि तेलंगाना के भद्राद्री कोठागुदेम जिले के पुलिस अधीक्षक सुनील दत्त ने बताया कि आधिकारिक सूत्रों से पुलिस को जानकारी मिली है कि सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी के सदस्य रमन्ना की मौत हो गई है. हम रमन्ना की मौत के बारे में और ज्यादा जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि माओवादी पार्टी ने इसकी कोई पुष्टि नहीं की है लेकिन विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में पुलिस अधिकारियों ने माना है कि रमन्ना की मौत हो चुकी है. रमन्ना माओवादी पार्टी की सेंट्रल कमेटी का सदस्य होने के अलावा दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सचिव भी था. उसे सेंट्रल कमेंटी का मेंबर 2014 में बनाया गया था.
रमन्ना मूल रूप से तेलंगाना के सिद्धपीठ जिले का रहने वाला था और लंबे समय से अंडरग्राउंड था. उसकी पत्नी सोडी ईडीमी उर्फ सावित्री भी अंडरग्राउंड माओवादी लीडर है और बस्तर के बस्तर के किस्ताराम एरिया कमेटी की सेक्रेटरी है. उसका बेटा श्रीकांत उर्फ रंजीत भी पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PGLA) के लिए काम करता है. रमन्ना का भाई पराशरामुलु भी पूर्व नक्सलवादी नेता था जो 1994 में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मारा गया था.
दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का हेड होने के नाते बस्तर के जंगलों में नक्सली मूवमेंट की जिम्मेदारी रमन्ना के कंधो पर ही थी. इसके अलावा महाराष्ट्र में पड़ने वाले गढ़चिरौली के जंगलों में भी रमन्ना का सिक्का चलता था.
रमन्ना छत्तीसगढ़ में सुरक्षबलों पर हुए कई हमलों का नेतृत्व किया था. 2010 में दंतेवाड़ा के चिंतालनार गांव में 76 सीआरपीएफ की शहादत का सबब बने हमले का सूत्रधार रमन्ना ही था. इसके बाद 2014 मे्ं सुकमा जिले में 16 जवानों की मौत का कारण भी वही बना. 2017 में बुरकापाल में 25 सीआरपीएफ के जवानों पर हमले के पीछे भी रमन्ना ही मास्टर माइंड था.
सभी हमलों में माना जाता है हाथ
नक्सली लीडरशिप को होगी दिक्कत
रमन्ना के न रहने के बाद नक्सलवादी आंदोलन को बड़ा झटका लग सकता है. वो जिस दंडकारण्य कमेटी का हेड हुआ करता था वो इलाका नक्सलियों के लिए सेफ जोन माना जाता था. रमन्ना लंबे समय से यहां सक्रिय था और उसकी वजह से नक्सलियों को पनाह पाने में आसानी होती थी. इस समय सीपीआई (माओवादी) का लीडर बेहद आक्रामक माना जाता है.