पानीपत फिल्म में राजा सूरजमल की भूमिका पर क्यों नाराज हैं जाट

पानीपत (Panipat) फिल्म को लेकर विवाद पैदा हो गया है. फिल्म में जाट राजा सूरजमल (Jat Maharaja Surajmal) को जिस तरह से दिखाया गया है, उसका विरोध हो रहा है. पानीपत फिल्म में जाट राजा सूरजमल के चित्रण को लेकर जयपुर समेत राजस्थान के कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं.


राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सेंसर बोर्ड से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग रख चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस मामले में अपील कर चुकी हैं. फिल्म एक्टर रणदीप हुड्डा ने कहा है कि एक समुदाय को गौरवान्वित करने के लिए दूसरे को नीचा दिखाना ठीक नहीं है.


दरअसल पानीपत फिल्म पानीपत की ऐतिहासिक तीसरी लड़ाई पर आधारित है. 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठाओं के बीच हुई थी. इसी युद्ध में महाराजा सूरजमल की फिल्म में दिखाई गई भूमिका को लेकर विवाद है. पानीपत फिल्म में दिखाया गया है कि युद्ध में मराठाओं का साथ देने के लिए जाट राजा सूरजमल आगरा के किले की मांग रख देते हैं. मांग पूरी नहीं होने पर वो मराठाओं का साथ देने से इनकार कर देते हैं. इसी को लेकर विवाद है. कहा जा रहा है कि महान जाट राजा सूरजमल को लेकर ये तथ्य सही नहीं है.


कौन थे राजा सूरजमल


राजा सूरजमल राजस्थान के राजपूत राजाओं के बीच इकलौते जाट राजा थे. उनके वीरता के कई किस्से भारतीय इतिहास में दर्ज हैं. राजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ था. सूरजमल राजा बदनसिंह के पुत्र थे. वो अपनी वीरता, दूरदर्शिता, कूटनीति के लिए जाने गए. 1733 में राजा सूरजमल ने भरतपुर रियासत की स्थापना की थी.



राजा सूरजमल की वीरता के कई किस्से मशहूर हैं. एक ऐसे ही किस्से के मुताबिक जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह के साथ राजा सूरजमल के अच्छे ताल्लुकात थे. जयसिंह की मौत के बाद उनके बेटों के बीच विरासत को लेकर झगड़ा शुरू हो गया. सूरजमल न्यायसम्मत जयसिंह के बड़े बेटे ईश्वरी सिंह को राजा बनाने के पक्ष में थे. जबकि उदयपुर रियासत के महाराजा जगतसिंह छोटे बेटे माधोसिंह को राजा बनाने के पक्ष में थे.


मार्च 1747 में विरासत की जंग में ईश्वरी सिंह विजयी हुए. लेकिन माधो सिंह मराठों, राठौड़ों और उदयपुर के सिसोदिया राजाओं के साथ मिलकर वापस युद्धभूमि में लौट आया. राजा ईश्वरी सिंह का साथ देने के लिए सूरजमल अपने 10 हजार सैनिकों को लेकर युद्धभूमि में पहुंच गए. लड़ाई के मैदान में राजा सूरजमल अपने दोनों हाथों में तलवार लेकर दुश्मन को गाजर मूली की तरह काटने लगे. राजा सूरजमल की वजह से युद्ध में ईश्वरी सिंह की जीत हुई. इसके बाद राजा सूरजमल की वीरता के किस्से घर-घर बताए जाने लगे.


 


मराठों से राजा सूरजमल के संबंध


राजा सूरजमल के मराठों से संबंध बनते-बिगड़ते रहे. उन्होंने अपने शासनकाल में अपना अधिकारक्षेत्र दिल्ली तक बढ़ा लिया था. दिल्ली के तख्त पर बैठे गाजीउद्दीन इस बात से नाराज हो गए. कहा जाता है कि इसके बाद गाजीउद्दीन ने सूरजमल के खिलाफ मराठों को भड़का दिया. उस वक्त मराठा काफी ताकतवर थे. मराठों ने भरतपुर रियासत पर चढ़ाई कर दी. हालांकि मराठा भरतपुर रियासत को जीत नहीं पाए. इस लड़ाई में मराठा सरदार मल्हारराव के बेटे खांडेराव होल्कर की मौत हो गई. बाद में मराठों ने राजा सूरजमल से समझौता कर लिया.


पानीपत की तीसरी लड़ाई में राजा सूरजमल की भूमिका


पानीपत की तीसरी लड़ाई अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच लड़ी गई थी. उस वक्त मराठा काफी ताकतवर थे. पानीपत की तीसरी लड़ाई में सदाशिव राव ने मराठों का नेतृत्व किया था. 14 जनवरी 1761 को हुए इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली का साथ अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने भी दिया था. पानीपत का तीसरा युद्ध मराठा जीतते-जीतते हार गए. जिसकी कई वजहें रहीं.


राजा सूरजमल ने युद्ध शुरू होने से पहले मराठा सेना का नेतृत्व कर रहे सदाशिव भाऊ को कई सलाह दिए थे. रणनीति बनाने में माहिर राजा सूरजमल ने कहा था कि अब्दाली की सेना पर अभी हमला करना ठीक नहीं है. सूरजमल की राय थी कि अब्दाली की सेना आसानी से सर्दी सह लेंगी. लेकिन वो गर्मी नहीं सह सकते, इसलिए गर्मी के दिनों में उन पर हमले करना ठीक रहेगा. लेकिन सदाशिव राव नहीं माने.


जनवरी की ठिठुरती सर्दी में मराठा सैनिकों के पास सर्दी से बचने के लिए गर्म कपड़े कम हो गए. जबकि अब्दाली की सेना चमड़े के जैकेट पहनकर आई थी. भीषण सर्दी में भी वो बचे रहे.


मराठा सेना में सैनिकों के साथ स्त्रियां और बच्चे भी चल रहे थे. उस वक्त युद्ध में जाने वाले सैनिकों के साथ ही महिलाएं तीर्थयात्रा पर निकल जाती थीं. सैनिकों के साथ होने की वजह से डकैतों का खतरा नहीं रहता था. महाराजा सूरजमल की सलाह थी कि स्त्रियां और बच्चों को साथ लेकर चलना ठीक नहीं है. इससे युद्ध में ध्यान बंटेगा. लेकिन सदाशिव राव ने उनकी एक भी सलाह नहीं मानी.


राजपूत राजाओं और गैर मराठा राजाओं ने भी तटस्थ रहकर युद्ध का नतीजा देखने का फैसला किया. जब तक लड़ाई बड़े और निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाती, वो इस युद्ध में शामिल होने को तैयार नहीं हुए.


राजा सूरजमल ने मराठा सैनिकों की मदद की


युद्ध में मराठों के आधे से ज्यादा सैनिक मारे जाने के बाद राजा सूरजमल ने उनकी काफी मदद की. मराठा सैनिकों के पास न खाने का राशन था और न कपड़े. राजा सूरजमल ने करीब 30-40 हजार सैनिकों को भरतपुर में शरण दी. उन्होंने जनता से इनकी मदद की अपील की. मराठा सैनिकों के लिए अनाज इकट्ठा किया गया. कहा जाता है कि उस वक्त करीब 20 लाख रुपये का खर्च आया था. राजा सूरजमल ने कई महीने तक मराठा सैनिकों को शरण दी. विदा करते वक्त उन्होंने हर सैनिक को एक रुपया, एक सेर अनाज और कपड़े दिए.


25 दिसंबर 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हिंडन नदी के तट पर हुए युद्ध में राजा सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए. जाट समुदाय उन्हें अपने नायक की तौर पर देखता है.


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