संभलिए, फिर महामारी बनकर लौट रही है चेचक

1975 में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन ने घोषणा की कि एशिया चेचक मुक्त हो चुका है. पांच साल बाद 1980 में पूरी दुनिया के चेचक मुक्त होने की घोषणा हुई. हालांकि लगता है कि चेचक फिर घातक तौर पर लौटने का संकेत दे रही है. अफ्रीका ही नहीं बल्कि यूरोप और एशिया में ये फिर बड़ी बीमारी के तौर पर उभर रही है. अगर इस पर गंभीर नहीं हुआ गया तो ये महामारी भी बन सकती है.


कम से कम अफ्रीकी महाद्वीप के कुछ देशों से तो ऐसे ही खतरनाक संकेत आ रहे हैं. कांगो में चेचक हजारों लोगों की जान ले चुकी है. अफ्रीका के ही एक और देश समोआ में इस समय इसे लेकर दहशत है. सरकार ने इमर्जेंसी घोषित कर दी है. देखते ही देखते 50 से ज्यादा बच्चे मौत के मुंह में समा चुके हैं. चिंता ये है कि ये बीमारी फिर पूरी दुनिया में पैर पसार रही है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़े कहते हैं कि दुनियाभर में चेचक के केसों में 300 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है.


एक जमाने में चेचक का खासा आतंक था. इसका कोई इलाज नहीं था. इससे मौते होती थीं.  1758 के आसपास इससे बचाव के लिए लिए वैक्सीन विकसित हुई, इस पर काबू पाने की कोशिश शुरू हुई, हालांकि ये वैक्सीन तभी ज्यादा असरदार होती है, जब बचपन में ही इसके टीके लगवाए जाएं.


जो देश चेचक के लिहाज से सबसे संवेदनशील माने जा रहे हैं, उसमें भारत भी है, जहां हर साल अब भी लाखों लोग इससे इंफेक्टेड होते हैं.


माना जा रहा है कि अफ्रीकी देश समोआ में जो चेचक फैल रहा है, वो इस बीमारी का अपडेटेड वर्जन है. इसका वायरस कहीं ज्यादा तीव्रता वाला और खतरनाक माना जा रहा है. हालात ये है कि जिन देशों में चिकनपॉक्स की कोई हिस्ट्री नहीं थी, कोई केस नहीं था, जिसे खत्म मान लिया गया था, वहां भी ये पैर पसार रहा है.


भारत में बड़े पैमाने पर अब भी लोग बच्चों को टीका नहीं लगवाते. आंकड़े कहते हैं कि टीकाकरण के मामले में भारत की 60 फीसदी आबादी ही सही मायने में कवर हो पाई है.


भारत में चेचक छोटे से लेकर बड़ों तक को ना केवल होती है बल्कि दूसरी बीमारियों के साथ जटिलताएं भी पैदा करती है, जिससे शख्स जिंदगी भर जूझता रहता है.


क्या ये भगवान का प्रकोप है


कई देशों में चेचक के टीके को लेकर तमाम तरह की अफवाहें हैं. अफ्रीकी देशों में मान लिया गया है कि इसके टीके लगवाने से भगवान का प्रकोप बरसता है. भारत में इसे माता या देवी का प्रकोप कहते हैं. इससे ग्रस्त होने के बाद भी लोग आमतौर पर इसकी दवाएं नहीं करते. वैसे तो 08-10 दिनों में इसकी तीव्रता कम हो जाती है लेकिन कई बार ये प्राणघातक भी साबित होती है.


इससे संभलने की जरूरत है. ये वायरस से फैलती है. इसके पीछे वेरिसेला जोस्टर वायरस वायरस को जिम्मेदार माना जाता है. ये वायरस मानव शरीर द्वारा एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं. अगर ये अफ्रीकी देशों में फैल रहे हैं तो वहां से दूसरे देश भी पहुंचेंगे. हालांकि एशिया में भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका में उनकी मौजूदगी पहले से है.


पूरे यूरोप में फैल रहा है


यूरोप में चेचक तकरीबन हर देश में फैल रहा है. ब्रिटेन, रोमानिया, जर्मनी, इटली, युक्रेन ऐसे देश हैं, जहां ये इस साल के शुरू से खतरे के रूप में चिन्हित किया गया. इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट कुछ दिनों पहले द न्यू यॉर्क टाइम्स ने प्रकाशित की थी.


कहा जाता है कुछ समय पहले यूक्रेन में इजरायल से एक रब्बी आया, उसी के साथ इस बीमारी का वायरस भी वहां आया. फिर ये यूरोप में फैलने लगा. ब्राजील में इसके 50,000 से ज्यादा रोगी दर्ज किये गए हैं. वहां ये बीमारी वहां से वेनेजुएला से आई बताई जा रही है. आप हैरान होंगे कि अमेरिका जैसे देश में तक चेचक ने पैर पसार लिया है.


कैसे फैलती है ये बीमारी 


आमतौर ये बीमारी इंफेक्शन और गंदगी से फैलती है. दूषित पानी से भी होती है. पूरे शरीर में लाल और सफेद दाने निकल आते हैं. जो असहनीय पीड़ा देते हैं. ये बीमारी खत्म होते होते पूरी तरह से खत्म होने में 20-22 दिन का समय ले लेती है. ये तेज बुखार के साथ होती है. भारत में तो अब भी ग्रामीण इलाकों में अगर ये होती है तो पीड़ित को इसलिए दवाई नहीं दी जाती कि इससे माता रुष्ट हो जाएंगी.


अगर ये बीमारी फैल रही है तो इससे बचाव के लिए टीके जरूर लगवाएं. हालांकि ये जवाब तो अभी डब्ल्यूएचओ के पास भी नहीं है कि जिस बीमारी को उन्होंने 1980 में खत्म कर देने का दावा किया था, वो फिर कैसे लौट आई. और कहीं ज्यादा घातकता के साथ.


एक बात और...अगर किसी को चेचक हो गई हो तो उसको एस्प्रिन कभी मत दीजिए, अन्यथा इससे बीमारी और घातक हो जाएगी बल्कि इससे लिवर, किडनी ब्रेन डैमेज होने का भी खतरा रहेगा.


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