चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध करेगा, चंदे का स्रोत जानने का अधिकार छीना गया था

 चुनाव आयोग ने भाजपा सरकार द्वारा लागू की गई इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का विरोध करने का फैसला किया है। सरकार ने चुनाव में फंडिग करने के इरादे से इसकी शुरुआत की थी। आयोग ने तय किया कि वह 25 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए 37 पेज के शपथपत्र के तहत अपने पुराने रूख पर ही कायम रहेगा। साथ ही आयोग, राजनीतिक दलों द्वारा सीलबंद लिफाफे में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत दी गई जानकारी भी सुप्रीम कोर्ट से साझा करेगा। आयोग ने गुरुवार को बैठक में इस पर फैसला लिया।


सूत्रों के मुताबिक, सभी ने माना कि आयोग इस मामले पर अपने स्टैंड से सुप्रीम कोर्ट को अवगत करा चुका है और इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। आयोग को फरवरी के पहले सप्ताह तक एडीआर द्वारा दायर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना है। बॉन्ड के प्रति इसी तरह का रूख आयोग ने मई 2017 में कानून मंत्रालय को बता दिया था। तब आयोग ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक फंडिंग पर गंभीर आपत्ति जताई थी। मंत्रालय को लिखा यह पत्र भी कोर्ट को सौंपे जाएंगे। 


कानून के लागू होने के बाद आधे से ज्यादा धन अकेले सत्तारूढ़ भाजपा को मिला




  1. यह हैं आपत्तियां


     


    जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29 के तहत 20 हजार रूपए से अधिक चंदा देने वाले किसी भी व्यक्ति को अपना नाम, पैन नंबर और सभी विवरण देना जरूरी था। वित्त कानून 2017 के जरिए इस धारा में संशोधन किया गया और इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से चंदा दिए जाने को छूट मिल गई। इस कारण एक हजार से लेकर एक करोड़ रूपए तक चंदा देने वाले व्यक्ति और लेने वाली पार्टी की पहचान गोपनीय रखा जाता है। चुनाव आयोग का मानना है कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और जवाबदेही समाप्त हो गई है। इससे विदेशी तथा फर्जी कंपनियों के माध्यम से नेताओं को फंडिग की जाएगी, जो राजनीति को प्रभावित करेगा। 


     




  2. यह थी व्यवस्था


     


    चुनाव आयोग की 29 अगस्त 2014 के निर्देशों के मुताबिक- सभी मान्यता प्राप्त दलों को सभी स्त्रोतों से मिलने वाली आय की वार्षिक ऑडिट रपट, 20 हजार रूपए से अधिक चंदा देने वालों का पूरा विवरण और खर्च आयोग के समक्ष दायर करना जरूरी था।


     




  3. यह हुए बदलाव


     


    मौजूदा एनडीए सरकार ने वित्त कानून 2016 के जरिए विदेशी चंदा नियंत्रण कानून 2010 में बदलाव कर चंदे की रकम की सीमा हटा दी थी। साथ ही वित्त कानून 2017 के जरिए जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29, आयकर कानून और कंपनी एक्ट में बदलाव करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए धन देने और लेने वालों का नाम पूरी तरह गोपनीय रखा जाता है। इसके बाद चुनाव आयोग के पास न तो चंदे का स्त्रोत जानने का अधिकार रह गया और न ही ये पता लगाया जा सका कि यह धन काला है या सफेद।


     




  4. कौन कर रहा है विरोध


     


    Image result for election commission of indiaभाजपा को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक चंदा देने की व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं। इसके जरिए अभी तक आधे से ज्यादा धन अकेले सत्तारूढ भाजपा को ही मिला है।



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